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विषय नं. 57 - श्री कृष्ण महापुरुष



अध्याय नं. 10 ,श्लोक नं. 37
श्लोक

वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥37॥

वृष्णीनाम् वासुदेवः अस्मि पाण्डवानाम् धनज्जयः ।
मुनीनाम् अपि अहम् व्यासः कवीनाम् उशना कविः ॥ ३७॥

शब्दार्थ

(वृष्णीनाम्) वृष्णी की पीढ़ी में (वासुदेव:) वासुदेव यानी कृष्ण (अस्मि) हूँ। (पाण्डवानाम्) पाण्डवों में (धनञ्जयः) अर्जुन हूँ। (मुनीनाम्) मुनि लोगों में (व्यासः) व्यास (अपी) भी (अहम्) मैं हूँ। (कवीनाम्) कवियों में (उशना) उशना (कवि) कवि हूँ।

अनुवाद

वृष्णी की पीढ़ी में वासुदेव अर्थात कृष्ण हूँ। पाण्डवों में अर्जुन हूँ। मुनि लोगों में व्यास भी मैं हूँ। कवियों में उशना कवि हूँ।