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विषय नं. 57 - श्री कृष्ण महापुरुष



अध्याय नं. 11 ,श्लोक नं. 50
श्लोक

संजय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास
भूयः ।
आश्वासयामास च सौम्यवपुर्महात्मा पुनः
भीतमेनंभूत्वा ॥50॥

इति अर्जुनम् वासुदेवः तथा उक्त्वा स्वकम् रुपम् दर्शयाम् आस भूयः ।
आश्वासयाम् आस च भीतम् एनम् भूत्वा पुनः सौम्य वपुः महा-आत्मा ।।५० ।।

शब्दार्थ

(इति) इस तरह (उक्त्वा) कहते हुए (स्वकम् ) अपने प्राकृतिक शक्ति से (ईश्वर ने) (भूयः) फिर से (रुपम्) अपनी (महान रचना) को (वासुदेव) श्री कृष्ण (सः) के स्थान पर ( दर्शयाम्) दिखाया (तथा) और (भीतम्) भयभीत (अर्जुन) अर्जुन को (आश्वासयाम् आस) दिलासा देने (उनके) (सौम्य) मित्र (और) (महा-आत्मा) महान आत्मा (श्री कृष्ण) का ( वपुः ) शरीर ( पुनः) दोबारा (भूत्वा) प्रकट हो गया।

अनुवाद

इस तरह कहते हुए अपने प्राकृतिक शक्ति से (ईश्वर ने) फिर से अपनी (महान रचना) को श्री कृष्ण के स्थान पर दिखाया। और भयभीत अर्जुन को दिलासा देने (उनके) मित्र (और) महान आत्मा ( श्री कृष्ण) का शरीर दोबारा प्रकट हो गया।