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विषय नं. 58 - महापुरुषों के नाम



अध्याय नं. 10 ,श्लोक नं. 6
श्लोक

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ॥6॥

महा ऋषयः सप्त पूर्वे चत्वारः मनवः तथा ।
मत् भावाः मानसाः जाता येषाम् लोके इमाः प्रजाः ।।६।।

शब्दार्थ

(पूर्व) प्राचीन काल के (सप्त) सात (महा) बड़े (ऋषयः) ऋषि (तथा) और (मानवः) मनु की पीढ़ी (सन्तानों) से भेजे जाने वाले (चत्वार ) चौदह (ऋषि) (मानसा) विचार करते हुए (मत्) मेरी (भावा) इच्छा पर चलने वाले थे (लोके) इस संसार में (इमाः) यह सारी मानवजाति (प्रजाः) सबसे पहले निर्माण किये जाने वाले मनुष्य से (येषाम्) और इन (ऋषियों की पीढ़ी) से ही (जाताः) पैदा हुए हैं।

अनुवाद

प्राचीन काल के सात बड़े ऋषि और मनु की पीढ़ी (सन्तानों) से भेजे जाने वाले चौदह ऋषि विचार करते हुए मेरी इच्छा पर चलने वाले थे। इस संसार में यह सारी मानवजाति सबसे पहले निर्माण किये जाने वाले मनुष्य से और इन ऋषियों की पीढ़ी से ही पैदा हुए हैं।

नोट

अर्थात मनुष्य जाति का मनुष्य द्वारा उत्पन्न होते रहना यह भी ईश्वर की महानता है। कम्प्युटर, कम्प्युटर को उत्पन्न नहीं करता।