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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 25
श्लोक

नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ।।25।।

न अहम् प्रकाशः सर्वस्य योग-माया समावृतः । मूढः अयम् न अभिजानाति लोकः माम् अजम् अव्ययम् ||२५|॥

शब्दार्थ

(लोक) (इस पृथ्वी) लोक में, (अहम्) मैं (प्रकाश) (तेज) (अपने) प्रकाश को (सर्वस्य) सारे लोगों को (न) नहीं देखता (समावृतः) मेरा न दिखाई देना (योग-माया) यह मनुष्य की परीक्षा ( से संबंध रखता है) (माम्) में (अजम्) जन्म लेने वाला नहीं हूँ (और) (अव्ययम्) अविनाशी हूँ (मुझे मृत्यू नहीं) (अयम) इस सत्य को (मुढः) मूर्ख लोग (न) नहीं (अभिजानाति) जानते।

अनुवाद

(इस पृथ्वी) लोक में, मैं (अपने) प्रकाश (तेज) को सारे लोगों को नहीं देखता। मेरा न दिखाई देना, यह मनुष्य की परीक्षा ( से संबंध रखता है)। में जन्म लेने वाला नहीं हूँ (और) अविनाशी हूँ (मुझे मृत्यू नहीं ) । इस सत्य को मूर्ख लोग नहीं जानते।