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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 4
श्लोक

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः ॥4॥

मया ततम् इदम् सर्वम् जगत् अव्यक्त-मूर्तिना। मत्-स्थानि सर्व भूतानि न च अहम् तेषु अवस्थितः ।। ४ ।।

शब्दार्थ

(यथा) मेरी (अव्यक्त) न दिखाई देने वाले (मूर्तिना) अस्तित्व के कारण (इदम्) इस (सर्व) संपूर्ण (जगत) जगत का (ततम्) फैलाव है (सर्व) सब (भूतानि) प्राणी (मत्) मुझसे (स्थानि) स्थित हैं (मुझ पर निर्भर है) (च) और (अहम्) मैं (तेषु) उनसे (अवस्थितः) स्थित (उन पर निर्भर) (न) नहीं हूँ।

अनुवाद

मेरी न दिखाई देने वाले अस्तित्व के कारण इस संपूर्ण जगत का फैलाव है। सब प्राणी मुझसे स्थित हैं ( मुझ पर निर्भर है), और मैं उनसे स्थित ( उन पर निर्भर) नहीं हूँ।