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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 6
श्लोक

यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् । तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय॥6॥

यथा आकाश स्थितः नित्यम् वायुः सर्वत्र-गः-
महान् । तथा सर्वाणि भूतानि मत-स्थानि इति उपधारय ।। ६ ।।

शब्दार्थ

( यथा) जिस प्रकार (वायुः) वायु (हवा) (नित्यम ) हमेशा (सर्वत्र-गः) और हर जगह (आकाश स्थितः) आकाश में उपस्थित है। (महान) (और जीवन के लिए अत्यंत) महत्त्वपूर्ण है (यथा) इस तरह (इति) इस (सत्य को समझो कि) (सर्वाणि भूतानि) सारे प्राणी (मत- स्थानि) मुझ पर निर्भर है। (मेरे कारण जीवित हैं।)

अनुवाद

जिस प्रकार वायु हमेशा और हर जगह आकाश में उपस्थित है। (और जीवन के लिए अत्यंत) महत्त्वपूर्ण है। इस तरह इस (सत्य को समझो कि) सारे प्राणी मुझ पर निर्भर हैं। (मेरे कारण जीवित हैं।)

नोट

जिस प्रकार Solar watch सोलर घड़ी सूर्य के प्रकाश से सक्रिय हो जाती है और काम करती है। इसी प्रकार ब्रह्माण्ड की हर वस्तु ईश्वर के तेज के एक अंश से सक्रिय और जीवित है। जैसे सोलर घड़ी की सुईयाँ सूर्य के प्रकाश से उर्जा पाकर चलती हैं। इसी प्रकार हमारा हृदय ईश्वर के तेज़ से उर्जा पाकर धड़कता है। इस विषय को अच्छी तरह समझने के लिए नोट नं. N-I पढ़िए।