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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 19
श्लोक

इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः । मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ॥19॥

मत-भक्तः इति क्षेत्र तथा ज्ञान ज्ञेय चोक्त समासतः ।एतत् विज्ञाय मतभावाय उप्पपद्यते
।। १९ ।।

शब्दार्थ

(इति) इस तरह ( क्षेत्रम्) मनुष्य का शरीर (और उसके गुण) (तथा ) और (ज्ञानम्) धार्मिक ज्ञान (च) और (ज्ञेय) जानने के योग्य (ईश्वर के बारे में तुम्हें) (समासतः) संक्षिप्त में (उत्कम्) कहा गया (ईश्वर ने कहा कि) (एतत्) यह सब (विज्ञाय) जानकर (मत) मेरी (भक्तः) भक्ति करने वाले (भक्त) (मत) मेरी (भावाय) इच्छा पर चलाने वाला स्वभाव (उपपद्यते) पर लेते हैं।

अनुवाद

इस तरह मनुष्य का शरीर (और उसके गुण) और धार्मिक ज्ञान और जानने के योग्य (ईश्वर के बारे में तुम्हें) संक्षिप्त में कहा गया। (ईश्वर ने कहा कि) यह सब जानकर मेरी भक्ति करने वाले (भक्त) मेरी इच्छा पर चलाने वाला स्वभाव पर लेते है।