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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 32
श्लोक

अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्ययः ।
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ॥32॥

अनादित्वात् निर्गुणत्वात् परम आत्मा अयम् अव्ययः । शरीर-स्थः अपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ।। ३२ ।।

शब्दार्थ

(कौन्तेय) हे कुन्ति पुत्र (अर्जुन) (अयम्) वह (ईश्वर) (अनादित्वात) आरंभ के बिना है (अजन्म है) (निर्गुणत्वात्) (उसमें मनुष्य जैसे) गुण नहीं (परम आत्मा) ईश्वर महान है (अव्यय) अविनाशी है (शरीर स्थः) वह शरीर (हृदय) में स्थित है (किन्तु) (करोति) (वह न) कुछ करता है (न) (और) न (ही) (लिप्यते) किसी से जुड़ा है।

अनुवाद

हे कुन्ति पुत्र (अर्जुन)। वह (ईश्वर) आरंभ के बिना है (अजन्म है)। (उसमें मनुष्य जैसे) गुण नहीं, ईश्वर महान है, अविनाशी है। वह हृदय में स्थित है, (किन्तु) (वह न) कुछ करता है (और) न (ही) किसी से जुड़ा है।