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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 33
श्लोक

यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥34॥

यथा सर्व-गतम् सौक्ष्म्यात् आकाशम् न उपलिप्यते ।
सर्वत्र अवस्थितः देहे तथा आत्मा न उपलिप्यते
।। ३३ ।।

शब्दार्थ

(यथा) जिस प्रकार (सौक्ष्म्यात् आकाशम् ) सूक्ष्म आकाश ( सर्वगतम्) सब जगह व्याप्त है (न उपलिप्यते) किन्तु किसी से जुड़ा नहीं है (तथा ) इसी प्रकार (आत्मा) ईश्वर (का तेज) (सर्वत्र) सब जगह (देहे) (और) शरीर में (भी) (अवस्थितः) व्याप्त (फैला है, समाया हुआ है) (उपलिप्यते) (किन्तु) किसी से जुड़ा हुआ नहीं है।

अनुवाद

जिस प्रकार सूक्ष्म आकाश सब जगह व्याप्त है, किन्तु किसी से जुड़ा नहीं है। इसी प्रकार ईश्वर (का तेज) सब जगह (और) शरीर में (भी) व्याप्त ( फैला है, समाया हुआ है) (किन्तु) किसी से जुड़ा हुआ नहीं है।

नोट

शरीर में ईश्वर के तेज को समझने के लिए नोट नं.N - १ में प्राण का अध्ययन करें। ईश्वर के तेज के एक अंश से मनुष्य और यह ब्रह्माण्ड गति में है। मनुष्य इस संसार में परीक्षा दे रहा है। वह लक्ष्य बनाने और प्रयास करने के लिए स्वतंत्र है। केवल परिणाम मनुष्य के वश में नहीं हैं। परिणाम ईश्वर के नियंत्रण में है।