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विषय नं. 6 - ईश्वर के गुण



अध्याय नं. 15 ,श्लोक नं. 16
श्लोक

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥16॥

द्वौ इमौ पुरुषौ लोके क्षरः च अक्षरः एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थ: अक्षरः उच्यते ।। १६ ।।

शब्दार्थ

(एरा) नि:संदेह (लोके) संसार में (इमौ) यह (द्वौ) दो प्रकार के (पुरुषौ) तत्व हैं (क्षरः) नाशवान (शरीर) (च) और (अक्षरः) अविनाशी (आत्मा) (च) और (उच्यते) (ईश्वर) कह रहा है कि (सर्वाणि) सारी (क्षर) नाशवान (भुतानि) प्राणियों (के शरीर को) (अक्षर) अविनाशी (आत्मा ने) (कूट) मज़बूती से (स्थ:) स्थित रखती है।

अनुवाद

निःसंदेह! संसार में यह दो प्रकार के तत्व हैं। नाशवान शरीर और अविनाशी (आत्मा) और, ईश्वर कह रहा है कि, सारी नाशवान प्राणियों (के शरीर को) अविनाशी (आत्मा ने) मज़बूती से स्थित रखती है।