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विषय नं. 7 - ईश्वर के आदेश



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 30
श्लोक

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥30॥

मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्य अध्यात्म चेतसा । निराशीः निर्ममः भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ।। ३० ।।

शब्दार्थ

(अध्यात्म चेतसा) (हे अर्जुन) विवेक और बुद्धि के द्वारा ईश्वर को पहचानते हुए (सर्वाणि) अपने सभी (कर्माणि) कर्म (कर्तव्य) (मयि) (केवल) मेरे (लिए करो) (संन्यस्य) मेरे अतिरिक्त किसी से अपेक्षा ना रखो। (निराशीः) आनंद भोगने की इच्छा न रखो। (निर्ममः) वासना छोड़ दो (विगतज्वरः) सुस्ती और कामचोरी को छोड़ कर (युध्यस्व) सत्कर्मों को युद्धरुप से करने वाले ( भूत्वा ) बन जाओ |

अनुवाद

(हे अर्जुन) विवेक बुद्धि के द्वारा (मुझ) ईश्वर को पहचानते हुए, अपने सभी कर्म (कर्तव्य) केवल मेरे (लिए करो)। मेरे अतिरिक्त किसी से अपेक्षा ना रखो। आनंद भोगने की इच्छा न रखो। वासना छोड़ दो। सुस्ती और कामचोरी को छोड़ कर सत्कर्मों को युद्ध रुप से करने वाले बन जाओ।