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विषय नं. 7 - ईश्वर के आदेश



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 41
श्लोक

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ। पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥41॥

तस्मात् त्वम् इन्द्रियाणि आदौ नियम्य भरत ऋषभ । पाप्यानम् प्रजहि हि एनम् ज्ञान विज्ञान नाशनम् ।।४१।।

शब्दार्थ

(तस्मात् ) इसलिए (भरत-ऋषभ) हे भारतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन (त्वम) तुम (आदौ ) सबसे पहले (इन्द्रियाणि) अपनी इच्छाओं को (या काम: भावना को ) ( नियम्य ) वश में करो (एनम् ) इस (ज्ञान) ज्ञान (विज्ञान) विज्ञान (नाशनम) (का) नाश करने वाली (पाप्यानम्) पापी (भावना को) (हि) नि:संदेह (तुम) (प्रजहि) बलपूर्वक मार डालो।

अनुवाद

इसलिए, हे भारतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! तुम सबसे पहले अपनी इच्छाओं को ( या कामः भावना को) वश में करो। इस ज्ञान विज्ञान (का) नाश करने वाली पापी (भावना को) नि:संदेह (तुम) बलपूर्वक मार डालो।