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विषय नं. 1 - अहिंसा



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 27
श्लोक

रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः । हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ।।27।।

रागी कर्म-फल प्रेप्सुः लुब्धः हिंसा-आत्मकः अशुचिः । हर्ष- शोक- अन्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ।।२७।।

शब्दार्थ

(कर्ता) कर्म करने वाला व्यक्ति (जो) (रागी) क्रोध करने वाला है ( लुब्ध:) लालची स्वभाव का है (कर्म-फल) अपने सत्कर्मों के फल की (प्रेप्स:) उम्मीद करता है (हिंसा-आत्मकः) हिंसक स्वभाव वाला है। (अशुचिः) स्वच्छ नहीं रहता (हर्ष) अच्छे समय (शोक) कठिन समय का (अन्वितः) (जिस पर ) प्रभाव होता है (राजस:) (ऐसा व्यक्ति) रजो गुण वाला) (परिकीर्तितः) कहा जाएगा।

अनुवाद

कर्म करने वाला व्यक्ति (जो) क्रोध करने वाला है, लालची स्वभाव का है, अपने सत्कर्मों के फल की उम्मीद करता है, हिंसक स्वभाव वाला है, स्वच्छ नहीं रहता, अच्छे समय और कठिन समय का ( उसपर) प्रभाव होता है। (ऐसा व्यक्ति) रजो गुण (के स्वभाव वाला) कहा जाएगा।