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विषय नं. 7 - ईश्वर के आदेश



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 62
श्लोक

तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत । तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।62॥

तम् एव शरणम् गच्छ सर्व-भावेन भारत । तत प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्राप्स्यसि शाश्वतम् ।। ६२ ।।

शब्दार्थ

(भारत) हे अर्जुन (तम्) उस (ईश्वर की) (शरणम्) शरण में (सर्व भावेन) हर प्रकार से आ जाओ (तत) उस (ईश्वर की) (प्रसादात्) कृपा से (तुम्हें) (पराम्) सर्वश्रेष्ठ (शान्तिम् ) शान्ति वाला (स्थान) स्थान (स्वर्ग) (शाश्वतम्) हमेशा के लिए (प्राप्स्यसि ) प्राप्त होगा।

अनुवाद

हे अर्जुन उस (ईश्वर की) शरण में हर प्रकार से आ जाओ। उस ईश्वर की कृपा से तुम्हें सर्वश्रेष्ठ शान्ति वाला स्थान स्वर्ग हमेशा के लिए प्राप्त होगा।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तो एक आज़माइश (परीक्षा) है, और ईश्वर ही है जिसके पास बड़ा बदला है। अतः जहाँ तक तुम्हारे बस में हो ईश्वर से डरते रहो, और सुनो और आज्ञा का पालन करो, और अपने माल खर्च करो, यह तुम्हारे लिए अच्छा है। जो अपने दिल की तंगी से (कंजूसी) सुरक्षित रह गए बस वही सफलता प्राप्त करने वाले हैं। यदि तुम ईश्वर को अच्छा कर्ज दो तो वह तुम्हें कई गुना बढ़ा कर देगा और तुम्हारे कुसूरों को माफ करेगा। ईश्वर बड़ा गुणग्राहक और सहनशील है। प्रत्यक्ष और परोक्ष हर चीज़ को जानता है, प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी है। (सूरह अल-तगाबुन ६४, आयत १५१८)