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विषय नं. 7 - ईश्वर के आदेश



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 65
श्लोक

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥65॥

मत- मनाः भव मत भक्तः मत् याजी माम् नमस्कुरु ।
माम् एव एष्यसि सत्यम् ते प्रतिजाने प्रियः असि मे।। ६५ ।।

शब्दार्थ

(मत) (सदैव) मेरे (मना:) (बारे में) सोचते रहो (मत्) (केवल) मेरी (भक्त) भक्ति करने वाले (भव) बनो (याजी) हर सत्कर्म को (मत्) (केवल) मेरे लिए करो (माम् ) मुझे ही (नमस्कुरु) नमस्कार करो (एव) नि:संदेह (माम्) (इन सारे कामों को करने से (एष्यसि ) पा लोगे (ते) (यह मेरा) तुम से तुम) मुझे (सत्यम् ) सच्चा (प्रतिजाने) वचन है (मे) (क्योंकी तुम) मुझे (प्रिय:) प्रिय (असि) हो।

अनुवाद

सदैव मेरे बारे में सोचते रहो। केवल मेरी भक्ति करने वाले बनो। हर सत्कर्म को केवल मेरे लिए करो। मुझे ही नमस्कार करो। निःसंदेह इन सारे कामों को करने से तुम मुझे पा लोगे यह मेरा तुम से सच्चा वचन है। क्योंकि तुम) मुझे प्रिय हो ।