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विषय नं. 8 - ईश्वर के आदेश



अध्याय नं. 2 ,श्लोक नं. 39
श्लोक

एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु । बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥39॥

एषा ते अभिहता साङ्ख्ये बुद्धिः योगेतु इमाम् शृणु। बुद्धया युक्तः यया पार्थ कर्म-बन्धम् प्रहास्यसि ।।३९।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन! (ते) मैंने तुम्हे ( एषा) यह सब (साङ्ख्ये) वेदों के ज्ञान से (अभिहिता) समझाया (बुद्धिः) जो तुम्हारे सोच विचार को (योगे) ईश्वर से जोड़ देता है। (तु) लेकिन अब ( इमाम् ) इस (उपदेश को) (बुद्धया युक्तः) ध्यान से (शुणु) सुनो (यथा) क्योंकि इससे तुम (कर्मबन्धम् ) अपने कर्तव्य को पूरा करने में (प्रहास्यसि ) प्रगती करोगे।

अनुवाद

हे अर्जुन! मैंने तुम्हें यह सब वेदों के ज्ञान से समझाया जो तुम्हारे सोचविचार को ईश्वर से जोड़ देता है। लेकिन अब इस (उपदेश को) ध्यान से सुनो क्योंकि इससे तुम अपने कर्तव्य से को पूरा करने में प्रगती करोगे।

नोट

नोट: प्रहास का अर्थ पंडीत इश्वरचंद ने विकास लिखा है। (पेज नं. ६१६)