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विषय नं. 8 - अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 4
श्लोक

न कर्मणामनारंभान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते । न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥4॥

न कर्मणाम् अनारम्भात् नैष्कर्म्यम् पुरुषः अश्नुते । न च संन्यसनात् एवं सिद्धिम् समधिगच्छति ||४||

शब्दार्थ

(न) न तो (कर्मनाम्) धार्मिक अनिवार्य कर्मों को (अनारम्भात्) न करने से (पुरुष:) मनुष्य को (नैष्कर्म्यम्) छुटकारा (अश्नुते ) मिलता है (च) और (न) न (एव) केवल ( सन्न्यसनात्) सामाजिक जीवन से संन्यास लेने से (सिद्धिम) आध्यात्मिक साधना में ही सफलता (समधिगच्छति) मिलेगी।

अनुवाद

न धार्मिक, अनिवार्य कर्मों को नकारने से मनुष्य को छुटकारा मिलता है। और न तो केवल सामाजिक जीवन से संन्यास लेने से; आध्यात्मिक साधना में ही सफलता मिलेगी। (अर्थात कर्म योग्य को करना ही होगा। )