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विषय नं. 8 - अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 6
श्लोक

सन्न्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः । योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥6॥

संन्यासः तु महाबाहो दुःखम् आप्तुम् अयोगतः । योगयुक्तः मुनिः ब्रह्म नचिरेण अधिगच्छति ।। ६ ।।

शब्दार्थ

(तु) किन्तु (महाबाहो) हे अर्जुन (संन्यास) सन्यास योग (अयोगता) कर्म योग के बिना (आप्तुम) सिद्ध होना ( दुःखम) कठिन है (मुनि) भला व्यक्ति ( योगयुक्तः) जो ईश्वर की प्रार्थना में लगा हुआ है (नचिरेण) देर लगाए बिना (शीघ्र ही) (ब्रह्मा) ईश्वर के आशिर्वाद को (अधिगच्छति) प्राप्त कर लेता है।

अनुवाद

किन्तु, हे अर्जुन सन्यास योग कर्म योग के बिना सिद्ध होना कठिन है। भला व्यक्ति जो ईश्वर की प्रार्थना में लगा हुआ है, वह देर लगाए बिना ईश्वर के आशिर्वाद को प्राप्त कर लेता है।