Home Chapters About



विषय नं. 8 - अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 12
श्लोक

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् । अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥12॥

युक्तः कर्म-फलम् त्यक्त्वा शान्तिम् आप्नोति नैष्ठिकीम् । अयुक्तः कामकारेण फले सक्तः निबध्यते ।। १२ ।।

शब्दार्थ

(युक्तः) ईश्वर की प्रार्थना में लगा हुआ व्यक्ति (कर्म-फलम्) अपने सत्कर्म के फल को (त्यक्त्वा) छोड़ देता है (अर्थात सत्कर्म निस्वार्थ करता है) (शान्तिम् ) और शांति (आप्नोति) प्राप्त करता है। (नैष्ठिकम्) सत्य मार्ग से भटका हुआ व्यक्ति (अयुक्तः) जो ईश्वर की प्रार्थना नहीं करता वह (काम) (केवल) मन के आंनद (फले सक्तः) फल कि आशा के

अनुवाद

ईश्वर की प्रार्थना में लगा हुआ व्यक्ति अपने सत्कर्म के फल को छोड़ देता है। (अर्थात सत्कर्म निस्वार्थ करता है) और शांति प्राप्त करता है। सत्य मार्ग से भटका हुआ व्यक्ति जो

नोट

पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, ईश्वर कह रहा है कि “हे मेरे भक्तों मेरी प्रार्थना के लिए अपने आप को (काम से) मुक्त कर लो (समय निकालो), तो मैं तुझे मन से धनी कर दूंगा और सरल और पवित्र जीवन दूँगा। और अगर तुमने लापरवाही की, तो मैं न तेरे हाथ खाली करुँगा और न तेरी दरिद्रता दूर करूँगा। (हाथ न खाली करने का अर्थ है, वह व्यक्ति सदैव व्यस्त रहेगा, उसके पास कभी समय नहीं होगा। और वह हमेशा पैसों के लिए परेशान रहेगा) (हदीसे कुदसी)