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अध्याय 1 ,श्लोक 11



श्लोक

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः । भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥11॥

अयनेषु च सर्वेषु यथा- भागम् अवस्थिताः । भीष्मम् एव अभिरक्षन्तु भवन्तः सर्वे एव हि ।। ११ ।।

शब्दार्थ

( दुर्योधन ने अपनी सेना के महारथियों से कहा ) (च) और (एव) निःसंदेह (सर्वेषु ) हर एक को (अथनेषु ) मोर्चा में (यथा) जिस प्रकार ( भागम) अलग-अलग भागों में (अवस्थिता) स्थित किया है। (सर्वे) उन सभी को (भक्त) अपनी-अपनी टुकड़ियों में रहते हुए जैसे अपनी रक्षा करते हैं; वैसे ( एव ही) अवश्य ही (भीष्यम) भीष्म पितामह (अभिरक्षन्तु ) की भी रक्षा करना चाहिए।

अनुवाद

(दुर्योधन ने अपनी सेना के महारथियों से कहा ) और निःसंदेह हर एक को मोर्चा में जिस प्रकार अलग-अलग भागों में स्थित किया है। उन सभी को अपनी-अपनी टुकड़ियों में रहते हुए; जैसे अपनी रक्षा करते हैं वैसे अवश्य ही भीष्म पितामह की रक्षा करना चाहिए।