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अध्याय 1 ,श्लोक 13



श्लोक

ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः । सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥13॥

ततः शख्डाः भैर्यः च पणव-आनक गोमुखाः । सहसा एव अभ्यहन्यन्त सः शब्दः तुमुलः अभवत् ।।१३।।

शब्दार्थ

(तत ) उसके बाद ( शंख ) शंख (च) और (भेर्य :) बड़े-बड़े ढोल (पणव-आनक) मृदंग (च) और (गोमुखा) बाजे इत्यादि अचानक ( अभ्यहन्यन्त ) एक साथ बनने लगे (शब्दाः) इनकी जो आवाज थी (सः) वह (एव) निःसन्देह ( तुमुल ) बहुत ही भयंकर (अमवत) थी।

अनुवाद

उसके बाद शंख और बड़े-बड़े ढोल मृदंग और बाजे इत्यादि। अचानक एक साथ बजने लगे। इनकी जो आवाज थी वह निःसन्देह बहुत ही भयंकर थी ।