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अध्याय 1 ,श्लोक 28



श्लोक

कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत् । दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ॥28॥

अर्जुन उवाच. दृष्टवा इमम् स्वजनम् कृष्ण युयुत्सुम् समुपस्थितम् । सीदन्ति मम गात्राणि मुखम् च परिशुष्यति ।।२८।।

शब्दार्थ

( युयत्सुम ) युद्ध की इच्छा से ( समुपस्थितम्) अपने सामने ( इमम् ) इस ( स्वजनम्) कुटुम्ब (दुष्टवा) देखकर (कृष्ण) हे श्री कृष्ण (मम्) मेरा ( गात्राणि ) शरीर (सीदन्ति ) कांप रहा है (च) और (मुखम्) मुख (परिशुष्याति) सुख रहा है।

अनुवाद

युद्ध की इच्छा से अपने सामने इस कुटुम्ब समुदाय को देखकर, हे श्री कृष्ण ! मेरा शरीर कांप रहा है और मुख सुख रहा है।