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अध्याय 1 ,श्लोक 30



श्लोक

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते । न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः ॥30॥

न च शक्नोमि अवस्थातुम् भ्रमति इव च मे मनः । निमित्तानि च पश्चामि विपरीतानि केशव || ३० ।।

शब्दार्थ

(मे) मेरा ( मनः) मन ( भ्रमति च ) भ्रमित हो रहा है (च) और ( एव ) इस प्रकार ( अवस्थातुम् ) खड़े रहना (शक्नोमि) (मेरे लिए) सम्भव (न) नहीं है ।

अनुवाद

मेरा मन भ्रमित हो रहा है और इस प्रकार खड़े रहना ( मेरे लिए ) सम्भव नहीं है।