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अध्याय 1 ,श्लोक 31



श्लोक

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव । न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥31॥

न च श्रेयः अनुपश्यामि हत्वा स्वजनम् आहवे । न काङ्क्षे विजयम् कृष्ण न च राज्यम् सुखानि च ।। ३१ ।।

शब्दार्थ

( केशव ) हे कृष्ण (मैं) (निमित्तानि) लक्षणों (शकुनों/ परिणाम) को (च) भी (विपरीतानि) विपरीत (पश्चामि ) देख रहा हूँ (च) और (आहव) युद्ध में ( स्वजनम् ) स्वजनों को (हत्वा) मार कर ( श्रेय ) श्रेय ( लाभ भी ) (न) नहीं (अनुपश्यमि) दिखाई दे रहा है।

अनुवाद

हे कृष्ण! मैं लक्षणों को (भी) विपरीत देख रहा हूँ। और हे कृष्ण!, युद्ध में अपने कुटुंब समुदायों को मार कर ( मुझे कोई ) लाभ भी नहीं दिखाई दे रहा है।