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अध्याय 1 ,श्लोक 35



श्लोक

आचार्या : पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः । मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः संबंधिनस्तथा ॥34॥
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन । अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ॥35॥

मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनः तथा । एतान् न हन्तुम् इच्छामि घ्नतः अपि मधुसूदन ।।३४।।
अपि त्रैलोक्य राजस्य हेतोः किम् नु मही-कृते ।।३५।।

शब्दार्थ

(तथा) अगर (आचार्य) आचार्य (पितर ) पिता (पुत्रा) पुत्र (च) और (एव) उसी प्रकार (पितामहाः) पितामह ( मातुला ) मामा ( श्वशुरा) ससुर (पौत्रा) पौत्र (श्याला) साले ( तथा ) तथा ( सम्बन्धिन) (अन्य ) सम्बधी (अपि) भी (घ्नत) मुझ पर प्रहार कर हैं (तो भी ) ( एतान्) इनको (मैं) ( हन्तुम ) मारना ( न ) नहीं (इच्छामि ) चाहता हूँ (मधुसुदन) हे कृष्ण (त्रैलोक्य) तीनों लोकों ( का राज्य ) ( हेतो) मिले ( अपि) तो भी ( मैं इनको मारना नहीं चाहता ) ( नु) फिर ( महीकृते) पृथ्वी के लिये तो (मैं इनको) (किम्) (मारुँ ही) क्यों?

अनुवाद

अपि त्रैलोक्य राजस्य हेतोः किम् नु मही-कृते । ( फिर भी) अगर आचार्य, पिता, पुत्र और उसी प्रकार पितामह, मामा, ससुर, पौत्र, साले तथा (अन्य ) सम्बंधी भी मुझ पर प्रहार करते हैं ( तो भी ) इनको (मैं) मारना नहीं चाहता हूँ। हे कृष्ण! तीनों लोकों ( का राज्य) मिले तो भी ( मैं इनको मारना नहीं चाहता), फिर पृथ्वी के लिये ( मैं इनको) (मारुँ ही) क्यों?