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अध्याय 1 ,श्लोक 36



श्लोक

निहत्य धार्तराष्ट्रान्न का प्रीतिः स्याज्जनार्दन । पापमेवाश्रयेदस्मान् हत्वैतानाततायिनः ||36||

निहत्य धार्तराष्ट्रान् नः का प्रीतिः स्यात् पापम् एव आश्रयेत् अस्मान् हत्वा एतान् आततायिनः ।। ३६ ।।

शब्दार्थ

( एतान ) इन ( आततायिन ) सम्बंधियों को ( हत्वा ) मारने से (अस्मान) हमें (पापम् ) पाप (एव) ही (आश्रयते) मिलेगा। (जनार्दन) हे कृष्ण (धार्तराष्ट्रान) ( इस कारण ) धृतराष्ट्र के पुत्रों को (निहत्य) मार कर (नः) हम लोगों को (का) क्या (प्रीतिः) प्रसन्नता (स्यात) होगी?

अनुवाद

जनार्दन । इन सम्बंधियों को मारने से हमें पाप ही मिलेगा। हे कृष्ण! (इस कारण) धृतराष्ट्र के पुत्रों को मार कर हम लोगों को क्या प्रसन्नता होगी?