Home Chapters About



अध्याय 1 ,श्लोक 37



श्लोक

तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् । स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ॥37॥

तस्मात् न अर्हाः वयम् हन्तुम् धातृराष्ट्रान्स बान्धवान् । स्वजनम् हि कथम् हत्वा सुखिनः स्याम माधव ।।३७।।

शब्दार्थ

(माधव) हे कृष्ण ! (स्वजनम्) अपने स्वजनों को (हत्वा) मारकर (हम) (कथम्) कैसे (सुखिन ) सुखी (स्थाम) होंगे (तस्मात ) इसलिये ( स्वबान्धवान्) अपने बान्धव (और) (धार्तराष्ट्रान) धृतराष्ट्र के पुत्रों को ( हन्तुम ) मारना (वयम) हमारे लिए (अर्हा) उचित (न) नहीं है।

अनुवाद

हे कृष्ण! अपने स्वजनों को मार (हम) कैसे सुखी होंगे? इसलिये अपने बान्धव (और) धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारना हमारे लिए उचित नहीं हैं।