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अध्याय 1 ,श्लोक 38



श्लोक

यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः । कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥38॥

यदि अपि एते न पश्यन्ति लोभ उपहत चेतसः । कुल-क्षय कृतम् दोषम् मित्र-द्रोहे च पातकम् ।।३८।।

शब्दार्थ

( यदि ) अगर (ऐते) इन लोगों को (कुल) कुल का विनाश करने (च) और (मित्र) मित्रों की (द्रोह) हत्या करने (पातकम्) जैसा पाप (कृतम्) करने में (अपि) भी ( दोषम) कोई दोष (न) नहीं (पर्थ्यान्त) दिखाई दे रहा है। (लोभ) ( तो इसका कारण है कि) लोभ ने (चेतस ) (इनके ) विवेक (सत्य के समझने की क्षमता को) ( उपहत) नष्ट कर दिया है।

अनुवाद

अगर उन लोगों को कुल का विनाश करने और मित्रों की हत्या करने जैसा पाप करने में भी कोई दोष नहीं दिखाई दे रहा है। (तो इसका कारण है कि), लोभ ने ( इनके ) विवेक (सत्य के समझने की क्षमता को नष्ट कर दिया है।