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अध्याय 1 ,श्लोक 39



श्लोक

कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम् । कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥39॥

कथम् न ज्ञेयम् अस्माभिः पापात् अस्मात् निवर्तितुम् कुल-क्षय कृतम् दोषम् प्रपश्यद्धिः जनार्दन ।।३९।।

शब्दार्थ

( जनार्दन) हे जनार्दन! (कृष्ण) (अस्मात ) उन ( लोगों के) (दोषम) दोष (चूक को) (प्रपश्यद्धि) हम ठीक-ठीक जान गए (पापातू ) ( हम उसे) पाप ( ज्ञेयम् ) (भी) समझते ( हैं तो ) ( कुल ) कुल (के) (क्षय) विनाश को (निवर्तितुम) रोकने के लिए (अस्माभिः) हमारे द्वारा (कथम्) क्यों (न) ना (कृतम्) प्रयास किया जाए ।

अनुवाद

हे जनार्दन ! (कृष्ण) उन (लोगों के दोष (चूक को) हम ठीक-ठीक जान गए । ( हम उसे ) पाप (भी) समझते ( हैं तो) कुल (के) विनाश को रोकने के लिए हमारे द्वारा क्यों ना प्रयास किया जाए ।