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अध्याय 1 ,श्लोक 42



श्लोक

संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च । पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥42।।

सङ्करः नरकाय एव कुलघ्नानाम् कुलस्य च । पतन्ति पितरः हि एषाम् लुप्त पिण्ड उदक क्रियाः ॥ ४२ ॥

शब्दार्थ

(एषाम) इन (सकडर ) दोगलों से (हि) ही ( उदक) सागर (और) (पिण्ड) धरती (कृपा) के प्रकृति पर (लुप्त) विनाश फैल जाता है (च) और (कुल) कुल को (घ्याम्) घोर अन्धकार में डालने वाले (कुलस्य) कुल के ( पितर) पूर्वज (एव) निःसन्देह (नरकाय ) नरक में (पतन्ति) गिराएं जाते हैं।

अनुवाद

इन दोगलों से ही सागर (और) धरती के प्रकृति पर विनाश फैल जाता है और कुल को घोर अन्धकार में डालने वाले कुल के पूर्वज निःसन्देह नरक में गिराऐ जाते हैं।