उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन । नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥44॥
उत्सन्न कुल-धर्माणाम् मनुष्यानाम् जनार्दन । नरके अनियतम् वासः भवति इति अनुशुश्रुम ||४४||
शब्दार्थ( जनार्दन) हे जनार्दन ! (मनुष्याषाम् ) जिन मनुष्यों के (धर्माणाम्) कुलधर्म (उत्सन्न) नष्ट हो जाते हैं। (वास) (उन मनुष्यों का) ठिकाना (अनियतम्) सदा के लिए (नरके) नरक में (भवति) होता है (इति) ऐसा (मैंने) (अनुशुश्रुम्) ज्ञानियों से सुना।
अनुवादहे जनार्दन ! जिन मनुष्यों के कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, (उन मनुष्यों का) ठिकाना सदा के लिए नरक में होता है, ऐसा (मैंने) ज्ञानियों से सुना।