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अध्याय 1 ,श्लोक 45



श्लोक

अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् । यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥45।।

अहोबत महत् पापम् कर्तुम् व्यवसिताः वयम् यत् राज्य-सुख-लोभेन हन्तुम् स्वजनम् उद्यताः ।।४५।।

शब्दार्थ

(अहो) आह ! (बत) बड़े खेद की बात है, कि (राज्य) राज्य से (सुख) मिलने वाले सुख के (लोभेन) लोभ में (स्वजनम) अपने स्वजनों को (हन्तुम) मारने के लिए (उधता) हम लोग तैयार हो गये ( यत) जो कि (वयम् ) हमने (महत्) बहुत बड़ा (पापम्) पाप (कर्तुम) करने का (व्यवसिताः) निश्चय किया है।

अनुवाद

आह! बड़े खेद की बात है कि राज्य से मिलने वाले सुख के लोभ में अपने स्वजनों को मारने के लिए हम लोग तैयार हो गये, जो कि हमने बहुत बड़ा पाप करने का निश्चय किया है।