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अध्याय 10 ,श्लोक 1



श्लोक

श्रीभगवानुवाच
भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥1॥

भूयः एव महा-बाहो शृणु मे परमम् वचः ।
यत् ते अहम् प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हित काम्यया ।।१।।

शब्दार्थ

(महाबाहो) हे महान भुजाओं वाले (अर्जुन) (भूयः ) दोबारा ( शृणु ) सुनो (मे) मेरे (परमम् ) सबसे श्रेष्ठ और दिव्य (वचः) वचन (शिक्षा) को (यत्) जो (अहम्) मैं (ते) तुम्हारी (हित-काम्यया) हित की कामना से (वक्ष्यामि ) कहूँगा ( एवं ) नि:संदेह (प्रीयमाणाय) (तुम मुझे) अत्यंत प्रिय हो ।

अनुवाद

हे महान भुजाओं वाले अर्जुन! दोबारा सुनो मेरे सबसे श्रेष्ठ और दिव्य वचन (शिक्षा) को, जो मैं तुम्हारी हित की कामना से कहूँगा । निःसंदेह तुम मुझे अत्यंत प्रिय हो।