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अध्याय 10 ,श्लोक 13



श्लोक

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥13॥

आहुः त्वाम् ऋषयः सर्वे देव-ऋषिः नारदः तथा ।
असितः देवलः व्यासः स्वयम् च एव ब्रवीषि मे।।१३।।

शब्दार्थ

(त्वाम्) (हे ईश्वर) आपको (ऋषय सर्वे) सभी ऋषि (देव-ऋषि नारद ) देव ऋषि नारद मुनि (तथा) और (असितः) असित (देवलः) देवल (व्यासः) महा ऋषि वेद व्यास जी (भी) (आहुः) आपको (इन्हीं गुणों वाला) कहते हैं। (च) और (एव) नि:संदेह (स्वयम्) आप स्वयं भी (अपने बारे में) (मे) मुझे (ब्रवीषि) (यही) कहते हैं।

अनुवाद

(हे ईश्वर) आपको सभी ऋषि, देव ऋषि नारद मुनि, और असित, देवल, अर्थात महा ऋषि वेद व्यास जी (भी) आपको (इन्हीं गुणों वाला) कहते हैं। और नि:संदेह, आप स्वयं भी अपने बारे में मुझे यही कहते हैं।

नोट

ईश्वर ने गवाही दी (ईश्वर ने कहा कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, और फरिश्तों ने और ज्ञानी लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करने वाली एक सत्ता (अर्थात ईश्वर) को जानते हैं। उस प्रभुत्वशाली, तत्त्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं। (सूरे आल-इमरान-३ आयत-१८)