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अध्याय 10 ,श्लोक 15



श्लोक

स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥15॥

स्वयम् एव आत्मना आत्मानम् वेत्थ त्वम् पुरुष उत्तम् । भूत-भावन भूत-ईश देव-देव जगत- पते ।।१५।।

शब्दार्थ

(एरां) नि:संदेह (हे ईश्वर) (आत्मना) आप (ही) अपने (आत्मानम्) आपको ( स्वयम् ) स्वयम ही (वेत्थ) (सबसे अच्छी तरह) जानते हैं (त्वम्) (हे ईश्वर) आप ( पुरुष - उत्तम ) महान व्यक्तित्व वाले हैं। (भूत-भावन) सारे प्राणियों के ईश्वर हैं। (देव-देव) देवताओं के ईश्वर हैं (जगत पते) ब्रह्माण्ड के शासक हैं।

अनुवाद

नि:संदेह! हे ईश्वर आप ही अपने आपको स्वयम ही सबसे अच्छी तरह जानते हैं। हे ईश्वर! आप महान व्यक्तित्व वाले हैं। सारे प्राणियों के ईश्वर हैं। देवताओं के ईश्वर हैं। ब्रह्माण्ड के शासक हैं।