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अध्याय 10 ,श्लोक 20



श्लोक

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥20॥

अहम् आत्मा गुडाकेश सर्व-भूत आशय-स्थितः ।
अहम् आदिः च मध्यम् च भूतानाम् अन्तः एव च।।२०।।

शब्दार्थ

(गुडाकेश) हे अर्जुन (सर्व) सारे (भूत) मनुष्यों के (आशय) हृदय में ( स्थितः) स्थित रहने वाली (आत्मा) आत्मा (अहम) मैं हूँ (च) और ( एवं) नि:संदेह ( भूतानाम्) मनुष्यों का (आदिः) आरम्भ (जन्म) (च) और (मध्यम्) बीच (जीवन) (च) और (अन्त) अन्त (करने वाला) (अहम) मैं हूँ।

अनुवाद

हे अर्जुन! सारे मनुष्यों के हृदय में स्थित रहने वाली आत्मा मैं हूँ। और निःसंदेह मनुष्यों का आरम्भ (जन्म) और बीच जीवन और अन्त करने वाला मैं हूँ।

नोट

इस श्लोक का अर्थ यह है की ईश्वर मानवजाति से कहते हैं कि मनुष्य के अन्दर जो आत्मा है उस पर विचार करो। कोई वैज्ञानिक मिट्टी की मूर्ती बनाकर उसमें आत्मा नहीं डाल सकता। आत्मा देखो मेरी कैसी महान रचना है। इसका अहसास करो तो मेरी महानता का तुम्हें एहसास होगा। इसी प्रकार मैंने जन्म, जीवन, और जो चक्कर बनाया है यह भी मेरी महानता दर्शाती है।