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अध्याय 10 ,श्लोक 23



श्लोक

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्॥23॥

रुद्राणाम् शङ्ककरः च अस्मि वित्त-ईशः यक्ष रक्षसाम्।
वसूनाम् पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ||२३||

शब्दार्थ

(रुद्राणाम् ) रुद्रा में (शङ्ककर) शंकर (अस्मि) हूँ। (वसूनाम) हर तरह के जल में, (पावकः) पवित्र करने वाला जल (अस्मि) हूँ (च) और (वित्त-ईश) देवताओं के रक्षक (यक्ष) यक्ष का (रक्षसाम्) रक्षक मैं हूँ (च) और (शिखरिणाम् ) सारे पर्वतों में (मेरुः) मेरु (अहम्) मैं हूँ।

अनुवाद

रुद्रा में शंकर हूँ। हर तरह के जल में पवित्र करने वाला जल हूँ। और देवताओं के रक्षक यक्ष का रक्षक मैं हूँ। और सारे पर्वतों में मेरु मैं हूँ।