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अध्याय 10 ,श्लोक 24



श्लोक

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥24॥

पुरोधसाम् च मुख्यम् माम् विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्
सेनानीनाम् अहम् स्कन्दः सरसाम् अस्मि सागरः ।।२४।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे पार्थ (अर्जुन)! ( पुरोधसाम्) पुरोहितों में ( मुख्यम्) सबसे मुख्य (बृहस्पतिम् ) बृहस्पति (माम् ) मुझको ही (विद्धि) समझो। (सेनानीनाम्) सेनापतियों में (अहम् ) मैं (स्कन्दः) कार्तिकेय हूँ (च) और (सरसाम्) जलाशयों में (सागरः) समुद्र (अस्मि) हूँ।

अनुवाद

हे पार्थ (अर्जुन)! पुरोहितों में सबसे मुख्य बृहस्पति मुझको ही समझो। सेनापतियों में मैं कार्तिकेय हूँ और जलाशयों में समुद्र हूँ।