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अध्याय 10 ,श्लोक 3



श्लोक

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥3॥

यः माम् अजम् अनादिम् च वेत्ति लोक महा ईश्वरम् । असम्मूढः सः मर्येषु सर्व-पापैः प्रमुच्यते ।।३।।

शब्दार्थ

(यः) जो (माम्) मुझे (अजम्) अजन्मा (अनादिम्) अनादि (आरंभ के बिना) (च) और (लोक) ब्रह्माण्ड का (महा ईश्वरम् ) महान ईश्वर (वेत्ति) मानता है (सः) वह (अस्समूढः) मूर्ख नहीं है (मर्त्येषु) मृत्यु के बाद (वह) (सर्व पापे) सब पापों से भी ( प्रमुच्यते) मुक्त हो जाएगा।

अनुवाद

जो मुझे अजन्मा अनादि (आरंभ के बिना) और ब्रह्माण्ड का महान ईश्वर मानता है वह मूर्ख नहीं है। मृत्यु के बाद वह सब पापों से भी मुक्त हो जाएगा।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर के बारे में एक आयत इस प्रकार है। वही प्रथम भी है और अन्तिम भी, और गोचर (ज़ाहिर) भी है और अगोचर (छिपा) भी, और उसे हर चीज़ का ज्ञान है। (पवित्र कुरआन ५७:३)