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अध्याय 10 ,श्लोक 31



श्लोक

पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् ।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥31॥

पवनः पवताम् अस्मि रामः शस्त्र-भूताम् अहम् ।
झषाणाम् मकरः च अस्मि खोतसाम् अस्मि जाहनवी ।।३१।।

शब्दार्थ

(पवताम्) पवित्र करनेवालों में (पवनः) वायु (अस्मि) हूँ (शस्त्र) हथियार (भृताम्) चलाने वालों में (रामः) राम (अहम् ) मैं हूँ। (झषाणाम् ) मछलियों में (मकरः) मगर हूँ (अस्मि) हूँ (च) और (स्त्रोतसाम्) नदियों में (जान्हवी) गंगा नदी (अस्मि) हूँ।

अनुवाद

पवित्र करनेवालों में वायु हूँ। हथियार चलाने वालों में, “राम, मैं हूँ।” मछलियों में मगर हूँ और नदियों में गंगा नदी हूँ।”