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अध्याय 10 ,श्लोक 33



श्लोक

अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥33॥

अक्षराणाम् अ-कारः अस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च।
अहम् एव अक्षयः कालः धाता अहम् विश्वतः मुखः ।।३३।।

शब्दार्थ

(अर्जुन) हे अर्जुन! (अक्षराणाम् ) सारे शब्दों में (अ) 'अ' (कारः) का पहला शब्द (अस्मि) हूँ। (सामासिकस्य) शब्दों के जोड़ में (द्वन्द्व ) द्वन्द्व समास (अहम् ) मैं (अस्मि) हूँ (च) और (एव) नि:संदेह (अक्षयः) सदैव स्थित रहने वाला (कालः) काल (मैं हूँ।) (धाता) पालने वाला (ईश्वर मैं हूँ।) (विश्वतः) ब्रह्माण्ड में सब ओर (मुखः) अपना मुख रखने वाला (अहम्) मैं हूँ।

अनुवाद

हे अर्जुन! सारे शब्दों में 'अ' का पहला शब्द हूँ। शब्दों के जोड़ में द्वन्द्व समास, 'मैं हूँ।' और निःसंदेह सदैव स्थित रहने वाला काल मैं हूँ। पालने वाला (ईश्वर मैं हूँ।) ब्रह्माण्ड में सब ओर अपना मुख रखने वाला, 'मैं हूँ।'