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अध्याय 10 ,श्लोक 34



श्लोक

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् ।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥34॥

मृत्युः सर्व-हर च अहम् उद्भवः च भविष्याताम् ।
कीर्तिः श्रीः वाक च नारीणाम् स्मृतिः मेधा धृतिः क्षमा ।।३४।।

शब्दार्थ

(सर्व) सारे मनुष्यों को ( मृत्युः ) मौत की ओर (हरः) ले जाने वाला (च) और (भविष्याताम् ) भविष्य में (प्रलय के दिन) (उद्भवः) (दुबारा) जीवित करने वाला (अहम) मैं हूँ (च) और (नारीणाम् ) स्त्रियों से प्राप्त होने वाला (कीर्ति) यश, (श्री) आनंद व सुख (च) और (वाक) उनकी बातचीत, (मैं हूँ।) (स्मृति) स्मरणशक्ति (मेधा) बुद्धि (धृतिः) धैर्य या सब्र (क्षमा) और क्षमा भी, मैं हूँ।

अनुवाद

सारे मनुष्यों को मौत की ओर ले जाने वाला और भविष्य में प्रलय के दिन (दुबारा) जीवित करने वाला मैं हूँ और स्त्रियों से प्राप्त होने वाला यश, आनंद व सुख और उनकी बातचीत, (मैं हूँ।) स्मरणशक्ति, बुद्धि, धैर्य और क्षमा भी मैं हूँ ।