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अध्याय 10 ,श्लोक 35



श्लोक

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ॥35॥

बृहत साम तथा साम्नाम् गायत्री छन्दसाम् अहम्
मासानाम् मार्गशीर्ष: अहम ऋतूनाम् कुसुम आकरः ।।३५।।

शब्दार्थ

(साम्नाम्) सामवेद के गीतों में (बृहत साम) बृहतसाम (तथा) और (छन्दसाम्) सारे छन्दों में (गायत्री ) गायत्री मंत्र (अहम् ) मैं हूँ। (मासानाम्) महीनों में (मार्ग-शीर्षः) मार्गशीर्ष: हूँ (ऋतूनाम्) मौसमों में (कुसुम आकरः) बसन्त का मौसम (अहम्) मैं हूँ।

अनुवाद

सामवेद के गीतों में बृहतसाम और सारे छन्दों में गायत्री मंत्र मैं हूँ। महीनों में, मौसमों में मार्गशीष हूँ, बसन्त का मौसम मैं हूँ।

नोट

श्लोक नं. १०.३५ में मार्गशीष महीने को ईश्वर ने अपनी महान रचना कहा है। इसका कारण समझने के लिए आप रमजान महीने को समझने का प्रयास करें। जैसे मोटरकार कुछ निर्धारित समय तक चलने के बाद सर्विसिंग के लिए गॅरेज में भेजी जाती है। इसी प्रकार साल भर में एक बार एक महीना मनुष्य को शारीरिक और अध्यात्मिक सर्विसिंग की आवश्यकता है और यह सर्विसिंग का महीना रमजान है। मानवजाति को प्रेरित करने के लिए ईश्वर ने इस महीने में पुण्य का भाव बढा दिया है। इस महीने जो एक पुण्य करेगा उसे ७० गुना अधिक पुण्य मिलेगा। इस कारण लोग इस महीने दान (जकात) बहुत देते हैं। फिर इस महीने में उपवास को अनिवार्य किया गया है और इसका कारण ईश्वर ने बताया कि मनुष्य में अतिति गुण (मुत्तकी गुण) जो सात्विक गुण से अधिक पवित्र है, वह उत्पन्न हो। इसका वर्णन सूरे- अल-बकराह (२) आयत (१८३) में है। अतीत गुण का वर्णन आध्याय न. १४ में श्लोक न. २१ से २६ तक है फिर इसमें रात को फर्ज़ ईशा नमाज़ के पश्चात तरावी की अतिरिक्त २० रकात नमाज पढ़ने को कहा हैं। इस से मनुष्य को तप का अनुभव होता है। पूरे दिन उपवास करने के बाद रात में एक घंटा खड़े होकर नमाज़ पढ़ना बहुत कठिन है। इस कठिनाई को सहन करने से मनुष्य तपस्वी हो जाता है। जब मनुष्य एक महिने उपवास रखता है, रोज रात एक घंटा तरावी की नमाज़ पढ़ता है, तो महीने के अन्त में ईद की नमाज़ के समय ईश्वर उस व्यक्ति को सब पापों से मुक्त कर देता है। इस प्रकार उपवास से शरीर भी स्वस्थ हो जाता है और आत्मबल भी बढ़ता है और मनुष्य पापों से भी मुक्त हो जाता है और गुण भी पवित्रता की बढ़ते है। इस्लामी महीने चांद के अनुसार होते हैं। रमजान वर्ष का नवाँ (९) महीना है। सनातन धर्म में भी महीने चांद के अनुसार होते हैं और मार्गशीष यही नवाँ महीना है जो मानवजाति के लिए ईश्वर की ओर से एक महान उपहार है। चाँद, सूर्य और तारों के कारण जो महीने, दिन या समय शुभ होता है वह धर्म के अनुसार किसी एक समुदाय के लिए नहीं बल्कि सारी मानवजाति के लिए शुभ होता है। इस कारण यह मार्गशीष या रमजान का महीना सारे मानवजाति के लिए शुभ महीना है। इस महीने में तप, यज्ञ और दान अधिक करना चाहिए। दुसरे शब्दों में उपवास, ईश्वर की बहुत प्रार्थना और जकात (दान) देना चाहिए।