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अध्याय 10 ,श्लोक 40



श्लोक

नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥40॥

न अन्तः अस्ति मम दिव्यानाम् विभूतीनाम् परन्तप ।
एषः तु उद्देशतः प्रोक्तः विभूतेः विस्तर: मया ।।४०।।

शब्दार्थ

(परन्तप) हे अर्जुन (मम्) मेरी (दिव्यानाम्) दिव्य (विभूतीनाम्) रचनाओं का (अन्तः) कोई अन्त (न) नहीं (अस्ति) है। (मया) मैंने ( तुम्हारे सामने जो अपनी) (विभूतेः) दिव्य रचनाओं का (विस्तरः) विस्तार से (प्रोक्तः) वर्णन किया है (एषः) यह (तु) तो (केवल) (उद्देशतः) संक्षेप में उदाहरण है।

अनुवाद

हे अर्जुन! मेरी दिव्य रचनाओं का कोई अन्त नहीं है। मैंने तुम्हारे सामने जो अपनी दिव्य रचनाओं का विस्तार से वर्णन किया है यह तो केवल संक्षेप में उदाहरण है।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, 'यकीनन रात और दिन के उलट-फेर में और हर उस चीज़ में जो ईश्वर ने ज़मीन और आसमानों में पैदा की है', निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो (असत्य देखने और असत्य कार्य करने से बचना चाहते हैं। (पवित्र कुरआन, सूरह यूनुस १०, आयत ६)