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अध्याय 10 ,श्लोक 8



श्लोक

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥8॥

अहम् सर्वस्य प्रभवः मत्तः सर्वम् प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते माम् बुधाः भाव समन्विताः ।।८।।

शब्दार्थ

(अहम्) मैं (सर्वस्य) संपूर्ण (प्राणियों का) (प्रभवः) रचयिता (निर्माता) हूँ (सर्वम्) संपूर्ण (प्राणि) (मते) मेरे द्वारा ही (प्रवर्तते) जीवित हैं (बुधाः) बुद्धीमान व्यक्ति (जो) (माम्) मुझे (इति) इस प्रकार (मत्वा) मानता है (भाव समन्विताः) वह पूरे ध्यान के साथ ( भजन्ते) मेरी प्रार्थना करते हैं।

अनुवाद

मैं संपूर्ण (प्राणियों का) रचयिता (निर्माता) हूँ। संपूर्ण (प्राणी) मेरे द्वारा ही जीवित है। बुद्धीमान व्यक्ति (जो) मुझे इस प्रकार मानता है, वह पूरे ध्यान के साथ मेरी प्रार्थना करते हैं।