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अध्याय 11 ,श्लोक 16



श्लोक

अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् । नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ||16||

अनेक बाहु उदर वक्त्र नेत्रम् पश्यामि त्वाम् सर्वतः अनन्त रुपम् । न अन्तम् न मध्यम् न पुनः तव आदिम् पश्यामि विश्व-ईश्वर विश्वरुप ।। १६ ।।

शब्दार्थ

(त्वाम् ) (हे ईश्वर) आपकी (अनन्त रुपम् ) अनन्त दिव्य रचनाओं को ( पश्यामि ) देख रहा हूँ (सर्वतः) (और) सभी (देवताओं को देख रहा हूँ जिनके) (अनेक) बहुत सारे (बाहु ) बाहु हैं (उदर) पेट है (वक्त्र) चेहरे हैं (नेत्रम्) आँखे हैं (विश्व ईश्वर) हे जगत के ईश्वर (विश्व रुप ) जिसने इस ब्रह्मांड को रुप प्रदान किया (न) न (मैं आपके) (आदिम) आरंभ (को) ( न मध्यम) न मध्य (को) (न अन्तम) न अंत को (पश्चाम्) देख रहा हूँ।

अनुवाद

हे ईश्वर आपकी अनन्त दिव्य रचनाओं को देख रहा हूँ। (और) सभी देवताओं को देख रहा हूँ जिनके बहुत सारे बाँह हैं, पेट है, चेहरे है, आँखे है । हे जगत के ईश्वर, जिसने इस ब्रह्मांड को रुप प्रदान किया, न (मैं आपके) आरंभ (को) न मध्य (को) न अंत को देख रहा हूँ।