Home Chapters About



अध्याय 11 ,श्लोक 2



श्लोक

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया । त्वतः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् ॥2॥

भव अप्ययौ हि भूतानाम् श्रुतौ विस्तरशः मया । त्वत्तः कमल-पत्र-अक्ष माहात्म्यम् अपि च अव्यययम् || २ ||

शब्दार्थ

(कमल) हे कमल के (पत्र) पत्तों के समान (अक्ष) आँखो वाले (कृष्ण) (हि) नि:संदेह (मया) मैंने ( त्वत्तः) तुमसे ( भुतानाम् ) प्राणियों के (भव) जीवन (अप्ययौ) (और) मृत्यु के (बारे में) (विस्तरश:) विस्तार से (श्रुतौ) सुना (च) और (अव्ययम्) अविनाशी (और) (महात्म्यम्) महान ईश्वर (के बारे में) (अपि) भी।

अनुवाद

हे कमल के पत्तों के समान आँखो वाले (कृष्ण) । नि:संदेह! मैंने तुमसे प्राणियों जीवन और मृत्यु के बारे में विस्तार से सुना, और अविनाशी और महान ईश्वर के बारे में भी.