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अध्याय 11 ,श्लोक 23



श्लोक

रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रंमहाबाहो बहुबाहूरूपादम् । बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालंदृष्टवा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम् ॥23॥

रुपम् महत् ते बहु वक्त्र नेत्रम् महाबाहो बहु बाहो उरु पादम। बहु उरम् बहु-द्रष्टा करालम् दृष्टवा लोकाः प्रव्यथिताः तथा अहम् ।। २३ ।।

शब्दार्थ

(महाबाहो) (अर्जुन ने कहा) हे महाबाहो (ते) आप (की) (महत) महान (रुपम् ) रुप को (जिसमें) (बहु) बहुत सारे (वक्त्र नेत्रम्) मुख और आँखे (बहु) बहुत सारे (बाहो) हाथ (ऊरम्) जंघे (पादम्) चरण (बहु) बहुत सारे (उदरम्) पेट (बहु) बहुत सारे (द्रष्टा ) दांतों की (करालम) भयानकता ( द्रष्टवा) देखकर (लोकाः) सारा जगत (तथा) और (अहम) मैं (भी) (प्रव्यथिताः) भयभीत हूँ।

अनुवाद

(इस श्लोक में यमराज का वर्णन है) अर्जुन ने कहा हे महाबाहो ! आप (के) महान रुप को जिसमें बहुत सारे मुख और आँखें, बहुत सारे हाथ, जंघे, चरण, बहुत सारे पेट, बहुत सारे दांतों की भयानकता देखकर सारा जगत और मैं भी भयभीत हूँ।

नोट

श्लोक नं. ११.१२ में अर्जुन का ईश्वर के तेज को देखने का वर्णन है। उसके बाद अर्जुन ने और बहुत सारे दृश्य देखे और आप चकीत और प्रसन्न थे। किन्तु ११.२३ मे यमराज को देखकर भयभीत हो जाते हैं। इस श्लोक में ईश्वर के बाद तुरन्त यमराज के महान रुप का वर्णन है। इस कारण अधिकतर लोग यमराज को भी ईश्वर ही समझते हैं। किन्तु श्लोक नं. ११.३२ में इसका वर्णन है कि महान आकार वाले यमराज हैं। और ईश्वर का कोई आकार नहीं केवल हज़ारों सूर्यों से अधिक तेज है।