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अध्याय 11 ,श्लोक 25



श्लोक

दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानिदृष्टैव कालानलसन्निभानि।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास ||25||

दष्टा करालनि च ते मुखानि दृष्टव एव काल अनल सन्नि-भानि । दिशः न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देव-ईश जगत- निवास ।। २५॥

शब्दार्थ

(ते) आपके (करालानि) भयंकर (द्रष्टव) दांत (च) और (काल-अनल) प्रलय काल की अग्नि (सन्नि-भानि) के समान (मुखानि ) मुख को (दृष्टव) देखकर (न) न (मैं) (दिशः) दिशा (जाने) जान पा रहा हूँ (च) और (न) न (शर्म) शांति (लभे) पा रहा हूँ (देव-ईश) देवताओं के देवता (जगत् निवास) हे जगत् निवास (प्रसीद) मुझ पर कृपा करो।

अनुवाद

आपके भयंकर दांत और प्रलय काल की अग्नि के समान मुख को देखकर न (मैं) दिशा जान पा रहा हूँ और न शांति पा रहा हूँ। हे देवताओं के देवता, हे जगत् निवास मुझ पर कृपा करो ।