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अध्याय 11 ,श्लोक 29



श्लोक

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥28॥
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगाविशन्ति नाशाय समृद्धवेगा: तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः ॥29॥

यथा नदीनाम् बहवः अम्बु-वेगा: समुद्रम् एव
अभिमुखाः द्रवन्ति । तथा तव अमी नर-लोक-वीराः विशन्ति वक्त्राणि अभिविज्वलन्ति ॥ २८ ॥
यथा प्रदीप्तम् ज्वलनम् पतग विशन्ति नाशाय
समृद्ध वेगाः ।
तथा एव नाशाय विशन्ति लोकाः तव अपि वक्त्राणि समृद्ध-वेगाः ।। २९ ।।

शब्दार्थ

( यथा) जिस प्रकार (बहवः) बहुत सारी (नदीनाम्) नदियाँ (अम्बु) पूरी (वेगाः) गति से ( समुद्रम् ) समुद्र ( अभिमुखाः) की तरफ (द्रवन्ति) दौड़ती हैं (तेज़ी से बहती हैं) (एवं ) नि:संदेह (तथा ) इसी तरह (तत्) आपके (अमी) मापे न जाने वाले (असीम) और (अभिविज्वलन्ति) भड़कते हुए ( वक्त्राणि ) मुंह में (लोक) संसार के (वीराः) शूरवीर (नर) मनुष्य (विशन्ति) प्रवेश कर रहे हैं। (यथा ) जिस प्रकार (प्रदीप्तम् ) जलती हुई (ज्वलनम् ) अग्नि में (नाशाय) (पतिंगे ) विनाश के लिए (समृद्ध) पूरी (वेगा) गति से ( विशन्ति ) प्रवेश करते हैं (एव) नि:संदेह (तथा) उसी तरह (लोकाः) सारे लोग (अपि) भी (नाशाय) विनाश के लिए (तव) आपके (वक्त्राणि) मुख में (समृद्ध) पूरी (वेगा) गति से (विशन्ति ) प्रवेश कर रहे हैं।

अनुवाद

जिस प्रकार बहुत सारी नदियाँ पूरी गति से समुद्र की तरफ दौड़ती हैं; (तेज़ी से बहती हैं)। नि:संदेह इसी तरह आपके मापे न जाने वाले और भड़कते हुए मुंह में संसार के शूरवीर मनुष्य प्रवेश कर रहे हैं। जिस प्रकार जलती हुई अग्नि में पतिंगे विनाश के लिए पूरी गति से प्रवेश करते हैं। नि:संदेह उसी तरह सारे लोग भी विनाश के लिए आपके मुख में पूरी गति से प्रवेश कर रहे हैं।